शिक्षा का अर्थ,सरकारी शिक्षा क्या है? | sarkari education

शिक्षा का अर्थ,सरकारी शिक्षा(Sarkari Education)

शिक्षा अपने और समाज के लिए बहुत जरूरी  है, क्योंकि यह आम जनता के लिए विभिन्न क्षेत्रों में सकारात्मक परिणाम प्रदान करता है। शिक्षा का मुख्य लक्ष्य सामाजिक न्याय, सामाजिक कल्याण और राष्ट्रीय विकास में सहायक होना है। यह एक ऐसा माध्यम है जिससे विभिन्न डिग्री के छात्र एक समान अवसर प्राप्त कर सकते हैं और अपनी ताकत का पूरा प्रदर्शन कर सकते हैं।

स्कूल

किसी भी देश में मानव संसाधन का अत्‍यधिक महत्‍व होता है। देश के नागरिकों की गुणवत्‍ता में सुधार लाने के विभिन्‍न सरकारी स्‍कूल खोले जाते है। education मानव अधि‍कार का अधिकार है। भारत जैसे देश में, जहां पर अभी भी गरीबी है, शिक्षा में सरकारी स्कूल का महत्व बहुत अधिक है। ये स्कूल एक सामान्य मानव अधिकार के रूप में शिक्षा के अधिकार को पूरा करने के लिए सरकार द्वारा स्थापित किए हैं। सरकार विभिन्न सुविधाओं जैसे कि तथा दोपहर के भोजन, मुफ्त education सामग्री, मुफ्त शिक्षा विद्यालय वस्तुएं आदि के माध्यम से गरीब बच्‍चों को education के लिए प्रेरित करती हैं।

सरकारी स्कूल गरीब परिवारों के बच्चों को education की सुविधा प्रदान करते हैं जो अपनी आर्थिक स्थिति के कारण निजी स्कूल में शिक्षा लेने में सक्षम नहीं होते हैं। इन स्कूलों में शिक्षकों का चयन सभी शिक्षा पात्रता मानदंडों के अनुसार होता है जिससे शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ती है।

सरकारी स्कूल में शिक्षा लेने के लिए कोई शुल्क नहीं होता है, जो सामान्य जनता को शिक्षा लेने के लिए सुविधा प्रदान करता है।

सरकारी स्कूल एक महत्वपूर्ण संस्थान हैं, लेकिन इनमें कुछ कमियां भी होती हैं।

  1. सरकारी स्कूलों में education की गुणवत्ता बेहतर नहीं होती है। शिक्षा मात्र औपचारिक हो गया है। वर्तमान में सरकारी विद्यालयों से शिक्षा प्राप्‍त बच्‍चें ही अपनी जिंदगी में सफलता अर्जित कर पातें है।
  2. सरकारी स्कूलों में अधिकतर स्थानों पर छात्रों की संख्या अधिक होती है जिससे शिक्षक छात्रों के साथ अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।
  3. सरकारी स्‍कूलों का सरकारी उचित प्रबंध न होने तथा उत्‍तदायित्‍व तय होने को कारण गुणवत्‍ता बनाये रखने में असफल है।
  4. योग्‍य शिक्षक न होने के कारण सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कम होता है जो छात्रों को आगे बढ़ने में कमजोर बनाता है।
  5. सुविधाओं में कमी: कुछ सरकारी स्कूलों में सुविधाएं नहीं होती हैं जैसे कि कम्प्यूटर लैब, खेल के मैदान आदि।
  6. भारतीयों की एक आदत है , व्यवस्था को सुधारने की बजाय , हम जुगाड़ से काम चला लेते है।

  7. सड़क ख़राब है तो स्कूटर की बजाय , कार ले लेंगे , बिजली नहीं है तो जनरेटर लगवा लेंगे , नगर पालिका /निगम का पानी ख़राब आ रहा है , RO लगवा लेंगे , मगर व्यवस्था में सुधार की मांग नहीं करेंगे , अपने मूलभूत अधिकार की मांग नहीं करेंगे।

  8. ठीक इसी तरह अगर सरकारी स्कूल में शिक्षा अच्छी नहीं है तो बच्चे को प्राइवेट स्कूल में डाल देंगे। भारत में स्कूल ख़राब है , बाहर भेज दो।

 सरकारी स्कूल एक महत्वपूर्ण संस्थान हैं, लेकिन इनमें कुछ कमियां भी होती हैं। 

  1. अधिक छात्र संख्या: सरकारी स्कूलों में अधिकतर स्थानों पर छात्रों की संख्या अधिक होती है जिससे शिक्षक छात्रों के साथ अधिक ध्यान नहीं दे पाते हैं।
  2. कम शिक्षा गुणवत्ता: कुछ सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता बेहतर नहीं होती है जो छात्रों को अच्छी शिक्षा प्रदान करने में असमर्थ बनाता है।
  3. कम अंग्रेजी भाषा का ज्ञान: कुछ सरकारी स्कूलों में अंग्रेजी भाषा का ज्ञान कम होता है जो छात्रों को आगे बढ़ने में कमजोर बनाता है।
  4. सुविधाओं में कमी: कुछ सरकारी स्कूलों में आधारभूत सुविधाएं नहीं होती हैं जैसे कि फर्नीचर, कम्प्यूटर लैब, खेल के मैदान, स्‍वच्‍छ पेयजल आदि।
  5. शिक्षा वोट नहीं दिलाती इसलिए नेता उदासीन होते हैं और और फिर हम भी शिक्षा का स्तर सुधारने पर जोर नहीं देते है।

शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार को निम्नलिखित कदम उठाने चाहिए:

  1. शिक्षकों को भर्ती की पारदर्शी प्रक्रिया होनी चाहिए, जिससे योग्‍य शिक्षक को हो सके चयनित किया जा सके।
  2. शिक्षा विस्तार के लिए दूरस्थ शिक्षा (डिजिल लर्निंग) की तकनीकों का उपयोग करना चाहिए जैसे कि ऑनलाइन शिक्षा, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, आदि।
  3. आधारभूत संरचनाओं की स्‍थापना के अधिक बजट की व्‍यवस्‍था चाहिए ताकि सुविधाएं और विद्यालयों की स्थिति में सुधार हो सके। भारत को अपने शिक्षा संस्‍थानों जिसमें प्राथमिक शिक्षा भी सम्मिलित है को विश्‍वस्‍तरीय बनाने के लिए उचित योजना के साथ धन और अन्‍य संसाधनों का उचित उपयोग करना होगा।
  4. छात्रों के लिए उचित सुविधाओं का विकास करना चाहिए, जैसे कि कम्प्यूटर लैब, खेल के मैदान, लाइब्रेरी, आदि।
  5. शिक्षा की गुणवत्ता को मौजूदा मापदंड एवं तकनीक नाकाम है, शिक्षा में निगरानी तंत्र को सशक्‍त बनाने हेतु नई तकनीक को आपनाने की आवश्‍यकता है।
  6. भारतीय शिक्षा संस्थान ने कुछ निश्चित क्षेत्रों में अच्छे विकास किए हैं, जैसे कि आईआईटी, आईआईएम, आईआईएस, नीति संस्थान आदि। हालांकि, उन्होंने अभी भी प्राथमिक एवं माध्‍यमिक शिक्षा में आशा के अनुसार में प्रगति नहीं की है, अंत: इस पर सरकार को विशेष ध्‍यान देना होगा क्‍योंकि यही सरकार की मदद सबसे ज्‍यादा आवश्‍यकता है।

सरकारी कर्मचारीअपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं पढ़ाते?

अंग्रेजो वाला रुआब आज भी हम सरकारी बाबुओ में देख सकते है, जो आम जनता को पसंद नहीं, वह सरकारी कर्मचारी सिर्फ दिखावे के लिए काम करते है और खुद की तरह अन्य कार्यालयों में भी कार्य होता होगा ऐसा सोचते है । इन्हे लाइन में खड़े रखना पसंद है पर लाइन में खड़े रहना पसंद नहीं, वह ऐसा मानते है की सरकारी कार्यालयों में कार्य धीमी गति से होता है । यह सारी मानसिकताएं उन्हें खानगी स्कूल, कॉलेज और अन्य क्षेत्रों के लिए भी खानगी सेक्टर्स का समर्थन करने को मजबूर करती है ।

किस किस को सरकारी कर्मचारियों के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ना अनिवार्य होना चाहिए?

‘सरकारीयों ‘ ने अपने ‘सरकारी ‘ स्कूल अलग से खोल रखे हैं , जैसे सेन्ट्रल स्कूल – पढाते हैं उनमें. आपका आशय शयद उन स्कूलों से है जहाँ ‘सरकारी’ ‘गैर सरकारियों ‘ को पढ़ाते हैं. ‘गैर सरकारियों’ की वैल्यू ‘ सरकारियों’ की तुलना में नगण्य होती है, तुच्छ हैं ये. दिल्ली सरकार हर बच्चे पर लगभग 5000 रूपये हर महीने खर्च करती है ( इसमें से अधिकतर टीचरों की तनख्वा और अन्य पर खर्च होता है ), प्राइवेट वाले भी लगभग इतनी ही फीस लेते हैं और अच्छी शिक्षा देते हैं. सरकार प्राइवेट की फीस भर दे , काहे को मुकाबला करने पे तुली पड़ी है.

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